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मि॒त्रा तना॒ न र॒थ्या॒३॒॑ वरु॑णो॒ यश्च॑ सु॒क्रतु॑: । स॒नात्सु॑जा॒ता तन॑या धृ॒तव्र॑ता ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mitrā tanā na rathyā varuṇo yaś ca sukratuḥ | sanāt sujātā tanayā dhṛtavratā ||

पद पाठ

मि॒त्रा । तना॑ । न । र॒थ्या॑ । वरु॑णः । यः । च॒ । सु॒ऽक्रतुः॑ । स॒नात् । सु॒ऽजा॒ता । तन॑या । धृ॒तऽव्र॑ता ॥ ८.२५.२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:25» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:21» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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शिव शंकर शर्मा

वे दोनों कैसे हों, यह दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - पुनरपि वे दोनों प्रतिनिधि कैसे हों, (मित्रा) सबके मित्र (तना) धनादिविस्तारक (न) और (रथ्या) सबके सारथि के समान हों, (सुक्रतुः) शोभनकार्यकर्ता (यः+च+वरुणः) जो वरुण हैं और मित्र (सनात्) सर्वदा (सुजाता) अच्छे कुल के (तनया) पुत्र हों, (धृतव्रता) लोकोपकारार्थ व्रत धारण करनेवाले हों ॥२॥
भावार्थभाषाः - परोपकार करना अति कठिन कार्य्य है, अतः यहाँ इन दोनों के विशेषण में मित्र, सुक्रतु और सुजात आदि पद आए हैं ॥२॥
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शिव शंकर शर्मा

कीदृशौ तौ भवेतामिति दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - पुनस्तौ कीदृशौ। मित्रा=सर्वेषां मित्रभूतौ। तना=धनादिविस्तारकौ। न=पुनः। रथ्या=रथिनौ=सारथिनौ इव। तथा। वरुणः। सुक्रतुः=शोभनकर्मा। यश्च मित्रः। तौ पुनः कीदृशौ। सनात्=चिरादेव। सुजाता=सुजातौ=कुलीनौ। तनया=तनयौ=पुत्रौ। पुनः। धृतव्रता=कल्याणाय धृतव्रतौ ॥२॥